Thursday, August 20, 2020

देश  रक्षा समं पुण्यं , देश  रक्षा समं व्रतं
देश  रक्षा समं  याज्ञो , दृष्टो नैव च नैव  च 

अर्थ : देश  रक्षा जैसा कोई पुण्य नहीं।  देश रक्षा के समान कोई व्रत नही और देश रक्षा जैसा कोई यज्ञ नही इसलिए  अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी देश की रक्षा करना प्रत्येक देशवासी का परम कर्तव्य है। 


Wednesday, August 12, 2020

सुखार्थी  त्यजते विद्यां  विद्यार्थी  त्यजते सुखम् 
सुखार्थिनः कुतो विद्या  कुतो विद्यार्थीनः सुखम् 

अर्थ : जो व्यक्ति सुख के पीछे भागेगा उसे ज्ञान नहीं मिलेगा।   जिसे ज्ञान प्राप्त करना है , उसे सुख का त्याग करना पड़ेगा।  सुख के पीछे भागने वाले को विद्या कैसे प्राप्त होगी तथा जिस को विद्या प्राप्त करनी है उसे सुख कैसे मिलेगा ?

क्षणशः  कणशश्चैव विद्यां अर्थं च  साधयेत् 
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे  नष्टे कुतो धनम् 

अर्थ : प्रत्येक पल का उपयोग विद्या अर्जन के लिए करना चाहिए और प्रत्येक पैसे को बचाकर रखना चाहिए।  अगर हम  समय के पल का उपयोग विद्या अर्जन के लिए नहीं करेंगे तो विद्या प्राप्ति नहीं होगी और अगर हम पैसे पैसे को बचाकर नहीं रखेंगे तो हम धन को एकत्रित नहीं कर सकते।  


अयं  निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम  
उदारचरितानां  तु वसुधैवकुटम्बकम् 

अर्थ : यह मेरा है , यह उसका है , ऐसे विचार केवल संकुचित मानसिकता वाले लोग ही सोचते हैं।  विस्तृत मानसिकता वाले लोगों के लिए तो पूरा विश्व ही एक कुटुंब है।  

Wednesday, August 5, 2020

नाहं जानामि केयूरे नाहं जानामि कुण्डले 
नूपुरे त्वभिजानामि नित्यं  पादाभिवन्दनात 

अर्थ : जब रावण सीताजी  का हरण कर लंका ले जाता है तब सीताजी अपने गहने कपडे की पोटली में बांधकर पुष्पक विमान से नीचे फेक देती है।  जब श्रीराम को यह पोटली मिलती है तो वे लक्ष्मण से पूछते है कि  क्या ये गहने सीता के है तो लक्ष्मण कहते है : मुझे नहीं मालूम कि यह हाथ कंगन सीताजी के हैं या नहीं और यह भी नहीं मालूम कि  यह कानो की बालियां  सीताजी की है या नहीं , परन्तु यह पैरो की बालियां  सीताजी की है क्योंकि मैं रोज उन्हें पैर  पड़ता हूँ।  
तैलाद्रक्षेत , जलाद्रक्षेत  रक्षेत्  शीथिल् बन्धनात् 
मूर्खहस्ते न दातव्यम एवं वदति पुस्तकम्  

अर्थ : पुस्तक कहता है कि  मेरी तेल से रक्षा करो।  पानी से रक्षा करो।  मेरा बंधन शिथिल न होने दो और मुर्ख के हाथो में मुझे मत दो।  
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते 
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

अर्थ : जब रावण को मारकर प्रभु श्रीराम लक्षमण सहित लंका जाते है तब सोने की लंका देखकर लक्षमण मोहित हो जाते है तब श्रीराम कहते हैं , माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी महान है ।